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किडनी से जुड़ी बीमारियों में जहां संतुलित आहार जरूरी है, वहीं आयुर्वेद के कई फार्मूले भी कारगर पाए गए हैं. इसलिए ‘नेशनल किडनी फाउंडेशन एंड द एकेडमी ऑफ न्यूट्रीशियन डाइटिक्स’ ने किडनी के मरीजों के लिए ‘मेडिकल न्यूट्रीशियन थैरेपी’ की सिफारिश की है. फाउंडेशन का कहना है कि यदि ऐसा रोगियों को हर्बल पदार्थो से परिपूर्ण और बेहतर आहार मिले तो बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है.

सर गंगाराम अस्पताल के नेफ्रोलॉजिस्ट मनीष मलिक कहते हैं कि यह सिफारिश महत्वपूर्ण इसलिए भी है, क्योंकि हाल में ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल रिसर्च’ में एक भारतीय आयुर्वेदिक फार्मूले ‘नीरी केएफटी’ को किडनी के इलाज में उपयुक्त पाया गया. यह आयुर्वेदिक फार्मूला है लेकिन इसके इस्तेमाल से ऐसे रोगियों में बड़ा सुधार देखा गया है. ‘नीरी केएफटी’ रक्त में सीरम क्रिएटिनिन, यूरिक एसिड तथा इलेक्ट्रोलेट्स के स्तर में सुधार करता है. इसलिए आजकुल गुर्दा रोगियों द्वारा बड़े पैमाने पर इसे टॉनिक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.

नीरी केएफटी को ‘एमिल फार्मास्युटिकल’ द्वारा तैयार किया गया है. एमिल के अध्यक्ष कहते हैं कि इसमें पुनर्नवा नामक एक ऐसी बूटी है जो गुर्दे की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को भी ठीक करती है. शिकागो स्थित ‘लोयोला विश्वविद्यालय’ के अध्ययनकर्ता डॉ. होली क्रमेर ने कहा कि ज्यादातर मरीजों को पता नहीं होता कि बीमारियों को नियंत्रित रखने में भोजन की क्या भूमिका है इसलिए अब आहार को गुर्दे की बीमारी के उपचार का हिस्सा बनाया जा रहा है.

‘पांडिचेरी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज’ के प्रोफेसर एवं नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. जी. अब्राहम भी इस शोध की पुष्टि करते हैं. उन्होंने एक शोध में पाया कि 42-77 फीसदी गुर्दा रोगी कुपोषण के शिकार थे. दरअसल, गुर्दे की बीमारी के चलते वह पर्याप्त भोजन नहीं ले रहे थे. कुछ अपनी मर्जी से तो कुछ घरवालों की सलाह पर ऐसा कर रहे थे. अब्राह्म कहते हैं कि यदि ऐसे मरीजों पर ध्यान केंद्रित किया जाए तथा उन्हें उचित पोषाहार मिले तो बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है.

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